…12 महीने पर्यटन के लिए हो रहे प्रयास

…12 महीने पर्यटन के लिए हो रहे प्रयास

हमारा इको टूरिज्म इसलिए वैदिक इको टूरिज्म कहलाएगा क्योंकि हम उस प्रदेश के वासी हैं जहां अगर हमें किसी जड़ी बूटी को भी लेना होगा तो पहले धरती मां का हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं क्योंकि ये हमारी बेहद पुरातन और वैदिक परंपरा का हिस्सा रही है।

उत्तरराखंड निर्माण से लेकर अब तक के 17 वर्ष में राज्य में धार्मिक, साहसिक पर्यटन की बात ही होती रही। लेकिन नैसर्गिक सुंदरता से लबरेज उत्तराखंड में इनसे आगे भी बहुत कुछ है। वर्तमान पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस क्षेत्र में कुछ नई पहल की हैं। अपने विश्वव्यापी विजन को उत्तराखंड के पर्यटन मानचित्र में स्थापित करने के लिए उन्होंने कदम बढाए हैं, अगर ये धरातल पर उतर गए तो उत्तराखंड देश का एक ऐसा प्रदेश होगा जहां बारह महीने दुनिया भर का पर्यटक उमड़ा रहेगा। यह विश्व मानचित्र पर पर्यटन प्रदेश के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करने में सफल होगा। देहरादून में हमारे सहयोगी मनोज इष्टवाल की पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से उनके पर्यटन प्रदेश की कल्पना पर बातचीत के कुछ अंशः
Satpal Maharaj
 चुनाव जीतने के बाद से ही आप पर एक अलग तरह का दबाब दिखने को मिलता रहा है। वह चाहे राजनीतिक क्षेत्र का रहा हो या पूरे प्रदेश की जनआकांक्षाओं का, क्योंकि आपका जितना बढ़ा राजनीतिक कद है प्रदेश के जनमानस की आपसे उतनी ही ज्यादा अपेक्षाएं भी हैं?

(मुस्कराते हुए) सबसे पहले तो मैं आपको ये बता दूं कि राजनीति में अपने को साबित करने के लिए जो समय होता है उससे शायद मैं काफी आगे निकल गया हूं और यही कारण भी है कि जन अपेक्षाएं अपेक्षाकृत मुझ पर पहले से ज्यादा बढ़ी हैं। लेकिन इतना अवश्य हुआ कि मैं विधानसभा चुनाव के बाद क्षेत्रीय जनता व प्रदेश के संपूर्ण जनमानस के बेहद करीब आया हूं। जनता जो प्यार मुझे दे रही है मैं उसका हृदय से आदर करता हूं और पूरी कोशिश कर रहा हूं कि उनकी हर आकांक्षा पर खरा उतर सकूं। मैं जनता की भावनाओं का आदर करता हूं एवं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि आने वाले समय में प्रदेश को विश्व के मानचित्र पर एक पर्यटन प्रदेश के रूप में साबित कर सकूं।

 ऐतिहासिक जनादेश के बाद राज्य सरकार पर काम को लेकर चौतरफा दबाव है, पर्यटन मंत्रालय में आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?

ये सच है कि केंद्र व प्रदेश की राजनीति में अंतर होता है। अभी प्रदेश की राजनीति के अध्ययन के लिए थोड़ा बहुत वक्त तो दीजिये! हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि केंद्र व प्रदेश दोनों जगह इस समय भाजपा की सरकार है। देश के प्रधानमंत्री सरकार बनने से पूर्व ही अपने अभिभाषण में अपनी मंशा जता चुके हैं कि डबल इंजन की सरकार होने के बाद वह प्रदेश में विकास की हर गतिविधि पर नजर रखेंगे। वे अपना कार्य भलीभांति पूरा कर रहे हैं। आए दिन मंत्रिमंडल को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये दिशानिर्देश देना। मोदी फेस्ट को आप देख ही रहे हैं। वहीँ प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी बखूबी अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। हम सभी पूरी ईमानदारी के साथ प्रदेश के विकास के लिए कार्य करने में जुटे हैं। जहां तक बोझ की बात है वह बोझ नहीं बल्कि जिम्मेदारियां हैं। सच कहें तो मुझे खुशी होगी कि मैं धर्म पर्यटन के मामले में प्रदेश को कुछ ऐसा नयापन दे सकूं ताकि हमारे वीरान होते गांव, बंजर होते खेत खलिहानों फिर से खुशहाली के युग में पहुंचे! हर युवा को रोजगार मिले यही हमारा प्रयास भी है।

 क्या आपको नहीं लगता कि हमारे गांवों से पलायन की वजह ही राजनीतिज्ञों के कारण है क्योंकि जो भी विधायक या मंत्री बना उसी ने गांव छोड़ दिया ?

आपका प्रश्न ही गलत है इसे सुधार लीजिये क्योंकि मैं भी राजनीतिज्ञ हूं और इसी प्रदेश का हूं। गांवों से होते अंधाधुंध पलायन ने मुझे ही नहीं मेरे पूरे परिवार को भी कचोटा। मुझे आज भी अपने घर-गांव की माटी से उतना ही प्यार व लगाव है जितना बाल्यकाल में था। बल्कि अब और ज्यादा हो गया है क्योंकि आज मेरा अपने गांव में मकान है और हम परिवार सहित नियमित रूप से गांव आते जाते हैं। मेरी देखा-देखी कई अन्य प्रतिष्ठित परिवारों ने भी उत्तराखंड के कई गांवों में अपने आवास पुनर्जीवित किये हैं। सच मानिए तो गांव हम सबकी ऊर्जा के स्रोत हैं। वहां आज भी पर्यावरणीय शुद्धता व लाड़ प्यार है, जो पल भर में सारी थकान मिटा देता है। यह अलग बात है कि हर राजनीतिज्ञ को सामजिक कार्यों के कारण घर परिवार से दूर रहना पढ़ता है लेकिन भाजपा के आज भी ज्यादातर विधायक अपने गांवों में निवास करते हैं। शिक्षा स्वास्थ्य और पानी को अब तक हम पलायन की मुख्य वजह मानते रहे थे लेकिन यह निरंतरता रही है हर बाप या मां अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सपने देखते हैं और उन्हें अधिकार भी है कि वे ऐसा करें, लेकिन हमारे पैर शहर की रुख करके वापस गांव की ओर नहीं बढ़ते यही समस्या है! हमारा प्रयास है कि यहां की जवानी को नौकरी की जगह स्वरोज़गार की ओर ले जाया जाय ताकि वे नौकर न रहें बल्कि दूसरों को नौकरी दें। इसके लिए हमें बड़े स्तर पर अपने पर्वतीय प्रदेश के लिए कार्य-योजना बनाने की जरुरत है और सच मानिए हमारी सरकार इस पर तेजी से कार्य भी कर रही है।
Satpal Maharaj .
 उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन से जुड़े हरिद्वार, देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी (आंशिक), रुद्रप्रयाग व चमोली जिले ही अब लाभान्वित होते रहे हैं। बाकी जिलों में आंशिक पर्यटन ही दिखने को मिलता है जबकि हम पूरे प्रदेश के हर जिले को पर्यटन से जोड़ सकते थे?

अब तक क्या होता रहा है और क्या नहीं ! ये बात छोड़िये क्योंकि अतीत के साथ चलना हमारी फितरत नहीं है। पर्यटन के लिए हम सिर्फ भाषणबाजी पर विश्वास नहीं करते। जहां तक मेरा सवाल है मैं अपनी इस देवभूमि पर धार्मिक, साहसिक, वेलनेस, रोपवे व फर्निकुलर निर्माण, ग्रामीण पर्यटन सहित तमाम उन बिंदुओं पर कार्ययोजना बना चुके हैं जो आने वाले समय में पूरे प्रदेश को देश ही नहीं बल्कि विश्व के पर्यटन के मानचित्र पर ला खड़ा करेगा। यहां 12 माह पर्यटक उमड़े रहेंगे और हर परिवार अपनी क्षमताओं के आधार पर इससे कहीं न कहीं जुडा रहेगा। हम वैदिक इको टूरिज्म व गोल्फ कोर्ट अलग विकसित करेंगे। हमारा इको टूरिज्म इसलिए वैदिक इको टूरिज्म कहलाएगा क्योंकि हम उस प्रदेश के वासी हैं जहां अगर हमें किसी जड़ी बूटी को भी लेना होगा तो पहले धरती मां का हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं क्योंकि ये हमारी बेहद पुरातन और वैदिक परंपरा का हिस्सा रही है। गोल्फ कोर्ट यहां की ह्सीन वादियों के लिए वरदान साबित होंगे क्योंकि जापान जैसा विकसित देश गोल्फ के लिए हजारों हजार करोड़ रूपये खर्च करने के लिए तत्पर रहता है हमें अपने खूबसूरत बुग्याल इसके लिए चयनित करने होंगे।

 यह चंद जिलों में ही जारी रहेगा या पूरे प्रदेश के जिलों के लिए कोई रोड-मैप आपका विभाग तैयार कर रहा है?

अच्छा प्रश्न है! इस संबंध में मैंने प्रदेश के समस्त विधायकों से जानकारी मांगी है चाहे वह भाजपा का हो या कांग्रेस का! इस से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशानिर्देशों के आधार पर हम पूरी ईमानदारी से प्रदेश के हर नागरिक तक अपनी योजनाओं का लाभ पहुंचाएंगे ताकि हम अपनी समृद्धशाली लोक परंपराओं का निर्वहन कर सकें। मैंने हर विधानसभा के विधायकों को पत्र लिखकर अपने क्षेत्र के पर्यटन स्थलों को चिन्हित करने कर उसकी जानकारी मांगी है ताकि हम प्रदेशव्यापी पर्यटन की एक ऐसी कारगर कार्य-योजना बना सकें जो हमें निरंतर हो रहे पलायन से बचायेगा।

 ऐसी किन योजनाओं को आप प्रदेश भर में लागू करने की कोशिश में हैं जो यहां 12 माह पर्यटन को जोड़े रखेगा और आर्थिकी में मदद देगा?

धार्मिक पर्यटन में हम चार धाम के अलावा शाक्त, शैव, वैष्णव, गैराड गोलू, नागराजा व अन्य स्थलों को सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना को प्रस्तावित कर रहे हैं ताकि प्रदेश भर में हमारे धार्मिक अनुष्ठानों पर धर्मावलंबी पहुंच पाएं। साथ ही साहसिक पर्यटन में हमारे पास असीम संभावनाएं हैं जिनमे एयर एडवेंचर स्पोर्ट्स, वाटर एडवेंचर स्पोर्ट्स, माउंटेन एडवेंचर स्पोर्ट्स, विंटर एडवेंचर स्पोर्ट्स, बंगी जम्पिंग, ज़िप लीनिंग/फ्लाइंग फॉक्स, ज़ोर्बिंग, ऑफरोडिंग आल टीरेन व्हीकल्स/बुग्गी, हाई रोप पार्क सहित दर्जनों साहसिक पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां हैं।

आप जानते ही हैं कि शिवपुरी अंतर्राष्ट्रीय रिवर राफ्टिंग हब के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। गंगा नदी में कुल 262 रिवर राफ्टिंग फार्मों को 576 राफ्तों के संचालन की अनुमति हमारे द्वारा दी गई है। इसके अलावा अन्य नदियों में 36 फर्मों को राफ्टिंग की अनुमति दी गई है। विभाग द्वारा टिहरी साहसिक पर्यटन महोत्सव, गंगा क्याक फेस्टिवल, सेलिंग रिगाटा, ट्रेक ऑफ द ईयर आदि का नियमित आयोजन किया जाता रहा है। इस वर्ष हमारे द्वारा नीति घाटी के द्रोणागिरी (चमोली) व उत्तरकाशी के हिमाचल से लगे बंगाण क्षेत्र के चाईशील/चांशल में ट्रेक ऑफ द ईयर चलाया गया।

 फिर आप इसे ग्रामीणों तक भला कैसे जोड़ेंगे किस तरह यह गांवों में रह रहे ग्रामीणों के लिए फायदेमंद होगा?

जहां वेलनेस पर्यटन के माध्यम से हमने योगा, आयुर्वेद, पंचकर्म आदि को महत्तता दी है वहीँ रोपवे निर्माण श्री केदारनाथ धाम, यमुनोत्री धाम, कार्तिक स्वामी धाम, भैरव गढ़ी, पूर्णागिरी, सुरकुंडा, कुंजापुरी, हेमकुंड इत्यादि में हम इसे बहुत जल्दी ही निर्मित कर गांव क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं। रही ग्रामीण पर्यटन की बात तो उत्तराखंड में ग्रामीण पर्यटन उत्थान योजना संचालित की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र में त्रिस्तरीय श्रेणियों व्यक्तिगत, एकल ग्राम तथा कलस्टर के रूप में विकसित कर रहे हैं। इसी योजना के तहत होम स्टे योजना स्थापित करने का लक्ष्य भी है। इस योजना को पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम से को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाए जाने की योजना भी प्रस्तावित है। हम पंडित दीन दयाल उपाध्याय मातृ-पितृ तीर्थाटन योजना के अंतर्गत पहले हि 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों को चारधाम निशुल्क यात्रा भी करवा रहे हैं। हमें उम्मीद ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास भी है कि आगामी समय में हम पर्यटन, तीर्थाटन, धर्म व लोक संस्कृति में पूरे देश दुनिया के लिए एक मिसाल के रूप में साबित होंगे।

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